Sadhana Shahi

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पिता का जाने व्यक्तित्व (कविता)17-Jun-2024

पिता का जानें व्यक्तित्व ऐसा,

पिता को हम जानें एक व्यक्तित्व ऐसा, जब तक जिया खुशियों का दौर जारी।

बाज़ार की हर वस्तुएंँ थीं हमारी, जब तक पिता थे हम थे सब पर भारी।

ना कोई वादा ना समझौता कोई, अंँगुली धरे जिसपर वो थी हमारी।

जब तक पिता थे न टूटा भरोसा, हिम्मत, हौसला भर के थी अलमारी।

कितना बड़ा कोई तूफ़ान आए, उड़ा ना वो सकता है हिम्मत हमारी।

कटीले व पथरीले राहों पे चलकर, सपनों को साश्वत किया उसने सारी।

दुःख- बाधा कोई मुझे आए छूने, छूने से पहले बना ओ भिखारी।

घरेलू कलह में जब घर हुआ खंडित, बेबस बना वो थी मति उसकी मारी।

हमारे सपनों को सच करने की ख़ातिर, कितनों से ना जाने खाए वो गारी।

दिखते थे हरदम कि रुतबा बहुत है, मुसीबत में जब हम जगे रात सारी।

ताड़ और खजूर न उनको तुम समझो, वटवृक्ष से वो तो कइयो पर भारी।

उनके लिए क्या लिखूंँ क्या मैं छोड़ूँ, लिख नहीं सकती कयानात सारी।

साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

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